शनिवार, 31 मई 2014

खुल रहे दिल के कई राज फिर से

(फोटो गूगल से साभार)


तेरी तस्वीर देखी है मैंने आज फिर से 
खुल रहे दिल के कई राज फिर से 

खो गयी है मेरी मुकम्मल रात कहीं 
जोड़ तारों को बजा रहा साज फिर से 

धड़कने खामोश बैठी थी तनहा अकेली 
धड़कनों को दे गया कोई अल्फाज फिर से 

आँखों में अरमानों का उत्सव है कैसा 
मायूसी में मुस्कानों का आया रिवाज फिर से 

दिल दरिया है मुहब्बत का  कैसे तुम्हें बताए 
दिल में बन रहा कहीं नया एक ताज फिर से 

तेरी तस्वीर देखी है मैंने आज फिर से 
खुल रहे दिल के कई राज फिर से

8 टिप्‍पणियां:

  1. प्‍यार का अहसास बना हुआ है और वही इतनी सुन्‍दर भावनाएं व्‍यक्‍त करवा पा रहा है। दिलकश।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (01-06-2014) को "प्रखर और मुखर अभिव्यक्ति (चर्चा मंच 1630) पर भी है!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. बहुत खूब ... प्रेम का गहरा एहसास लिए है ग़ज़ल ...

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