शुक्रवार, 21 जून 2013

नभ पर बादल देखो कैसे उमड़ घुमड़ कर छाता है




दिग दिशाओं से कोई 
गर्जन करता आता है 
नैन तकते वसुधा को 
दूर ही से आवाज लगाता है   
मंद समीर की बढ़ी गति, नभ का संदेशा लाता है 
नभ पर बादल देखो कैसे उमड़ घुमड़ कर छाता है  


विटप लतिकाएँ झूम झूम कर 
आलिंगन करती आनंदित होकर 
उड़ रहे तृण पात हवा में 
दौड़ रहे आह्लादित होकर 
झूम रही लतिकाओं का, नृत्य-गान दिख जाता है 
नभ पर बादल देखो कैसे उमड़ घुमड़ कर छाता है  


दिखती विहगों की कलाबाजियां 
करती हवाओं संग अठखेलियाँ
नभ का कोना छू रहे  
टूटी मानो पैरों की बेड़ियाँ 
नभचरों का नव नर्तन,  नव स्पंदन भर जाता है 
नभ पर बादल देखो कैसे उमड़ घुमड़ कर छाता है 
 
 
तीक्ष्ण किरणों का विस्तृत जाल  
अब भंग हुआ जाता है 
नभ का जादूगर अनूठा 
अपना मायाजाल बिछाता है 
पुंज तेज रविकर का, कैसे मद्धम पड़ता जाता है 
नभ पर बादल देखो कैसे उमड़ घुमड़ कर छाता है 





@फोटो: गूगल से साभार

गुरुवार, 13 जून 2013

प्रेम हर रंग में






बस एक कोने से रंग पकड़कर उसे प्रेम तक पहुंचाने की कोशिश :-)



हरी वसुंधरा 
वसुंधरा पर कई नदी 
यमुना भी है एक नदी 
यमुना पार रास रचाता मुरली वाला 
राधा मुरली वाले की दीवानी 
राधा प्रेम पुजारिन प्रेम आशक्त है 
प्रेम हर रंग में 
प्रेम ही आदि प्रेम अनन्त है  
 
लाल सूरज दिखे सांझ को 
सांझ बुलाती चाँद को 
चाँद को है चाहता चकोर 
चकोर चाँद के लिए प्रेम उन्मत है
प्रेम हर रंग में
प्रेम ही आदि प्रेम अनन्त है  
 
नीला है गगन 
गगन है सागर का दर्पण 
सागर है विशाल 
विशाल होता है दिल 
दिल एक मंदिर है 
मंदिर में प्रेम ही प्रतिध्वनित है 
प्रेम हर रंग में
प्रेम ही आदि प्रेम अनन्त है  
 
काला है बादल 
बादल करता बारिश 
बारिश सींचती धरा 
धरा पर खिलते फूल 
फूल तैयार वंदन को अर्पण को 
वंदन इष्ट का ईश्वर का
भक्ति में मस्तक प्रेम नत है 
प्रेम हर रंग में
प्रेम ही आदि प्रेम अनन्त है  
.
.
.
सच में प्रेम के रंग अनंत हैं 
 
 
 
 
 
@फोटो : गूगल से साभार 
 
 
 

सोमवार, 3 जून 2013

कि बचपन ही अच्छा था



कि बचपन ही अच्छा था 
हर चीज हर बात 
कितनी अच्छी थी 
वो वजनदार बस्ते 
उतने भी भारी नहीं थे 
वो स्कूल में मिले काम 
उतने भी मुश्किल नहीं थे

टिफिन में मम्मी के हाथों का बना खाना 
मिल बांटकर दोस्तों के संग खाना 
कितना अच्छा था 
खाने का वह मजा 
वह स्वाद सबसे अच्छा था

वह साईकिल का टायर 
और किसी लकड़ी से उसे घुमाते हुए दूर तक जाना 
कितना अच्छा था
दौड़ते पहियों के संग थके पैर का कभी ना थकना 
और एक पूरी दुनिया घूम कर आ जाना 
सब कितना अच्छा था

हर त्योहार का इन्तजार करना
उसके आने की उलटी गिनतियाँ गिनना
नए कपडे, स्वादिष्ट पकवान
मम्मी के कामों में थोडा बहुत हाथ बंटाना
और उससे ज्यादा काम बढ़ाना
और बने पकवानों को 
थोड़ी थोड़ी देर पर 
हाथों में ले
घूम घूम कर खाते रहना
त्योहारों वाला वह मौसम कितना अच्छा था

छुप्पन छुपाई 
गिल्ली डंडा 
विष-अमृत 
ऐसे कितने ही मजेदार खेल खेलना 
उन खेलों में जीतना 
या फिर हारना भी 
कितना अच्छा था

लड़ना, झगड़ना
डांट सुनना
रूठना मनाना
शरारते करना
अपनी बातें मनवाना
गुल्लक में एक एक पैसे जमा करना
उसे फोड़ना फिर गिनना
उन पैसों का कुछ खरीदना 
भैया के गुल्लक से चुपचाप पैसे निकालना
फिर आइसक्रीम खाना
पतंगे उड़ाना
कटी पतंगों के पीछे भागना
और भी कितनी बातें
सब कितना अच्छा था

रात में दिया तले 
सब भाई-बहनों का  
पापा के कहने पर जबरदस्ती बैठना 
बहते पसीने में 
मद्धिम रौशनी में 
कॉपी किताब खोलकर पढ़ना  
होम वर्क पूरा करना 
कितना अच्छा था

और सबसे अच्छी बात
मम्मी के हाथों की बनी
गरम गरम रोटी खाना
साथ बैठकर
कभी गोद में सर रखकर
कुछ कहानियां सुनना
बातों बातों में
बहुत कुछ सीखना
कभी खुद तो कभी मम्मी का
अपने हाथों से पंखा झलना
वो सब कितना अच्छा था

कई चीजे छूट गईं 
कितनी बातें बदल गईं  
नहीं बदला तो मम्मी पापा का 
हमारे लिए वही स्नेह, वही प्यार 
मेरा बचपन आज भी 
खेल रहा है उनकी आँखों में 
आज बस वही एक चीज तो अच्छी है 
पर शायद ..... 
अब मैं उतना अच्छा नहीं ....
जितना मेरा बचपन !





@फोटो: गूगल से साभार 



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